प्राचार्य सन्देश



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सा विद्या विमुक्तेय- भारतीयों का यह विद्या सम्बन्धी वैदिक सूत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना हजारों साल पहले हरा होगा। विद्या वह है जो मनुष्य को सब प्रकार के संबंधों से मुक्त कर उसे स्वीधन चेतना और सब प्रकार की पराधीनताओं की श्रंखलाओं से मुक्त होने की प्रेरण देती है। प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार ने भी लिखा है- ''हो चुकी हर धार पर ऐसी व्यवस्था, शौक से डूबे जिसे अब डूबना है।" इससे भी कठुतर यतार्थ यह है- इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है, हर किसी का पैर घुटनों तक सना है।

हमारे महाविद्यालय का लक्ष्य यही है कि कर्तव्य और सच्चरित्र छात्रों का निर्माण करना, क्योंकि कर्मयज्ञ से ही जीवन के सपनों का सार मिलेगा, हम इसी दिशा में कार्यरत हैं। हमारे यहाँ महाविद्यालय सम्बन्धी साज-सज्जा तो है ही लेकिन सर्वोपरि है अपने-अपने विषयों में निष्ठावान और पारंगत प्राध्यापक और साथ ही में विभिन्न विषयों की ज्ञानवर्धक पुस्तकों का पुस्तकालय, जहाँ पहुँचकर छात्र/छात्राएँ इस लाभ को सदैव अपने साथ रखेंगे ।



उठो जागो और तब तक लक्ष्य प्राप्त न हो रुको मत।

प्राचार्य

डॉ. सुरजीत कौशिक